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Saturday, May 31, 2025

इतने सारे नियम

 इतने सारे नियम

आज का मिशन समाचार हमें इंडोनेशिया की एक युवती, फेबियोला की जीवन यात्रा पर लेकर चलता है – एक ऐसी कहानी, जो दुख, जिज्ञासा, विश्वास और आशा से बुनी हुई है। यह कहानी एडवेंटिस्ट मिशन दक्षिणी एशिया-प्रशांत डिवीजन के अंतर्गत एंड्रयू मैकचेस्नी द्वारा लिखी गई "इतने सारे नियम" से ली गई है। 

फेबियोला का जीवन कठिनाइयों की छाया में आरंभ हुआ। जब वह माँ के गर्भ में तीन महीने की थी, तभी उसके पिता इस संसार को छोड़ गए। यह पहला आघात था, जो उसके जीवन की नींव पर पड़ा। समय बीता, और जब वह 18 वर्ष की हुई, तो उसकी माँ भी चल बसीं। जैसे यह दुख कम नहीं था, दो वर्ष बाद उसकी दादी, जिनके साथ वह पली-बढ़ी थी, स्वर्ग सिधार गईं। दादी की मृत्यु ने उसके जीवन को एक खालीपन में धकेल दिया — एक ऐसी चुप्पी जिसमें प्रेम की गर्माहट और अपनापन कहीं गुम हो गया।

उस समय फेबियोला एक नर्स बनने के लिए क्लाबाट विश्वविद्यालय में पढ़ रही थी। उसकी बड़ी बहन ने उसे सेवेंथ-डे एडवेंटिस्ट विश्वविद्यालय में दाखिला लेने की सलाह दी — एक ऐसा स्थान जहाँ अनुशासन और नियमों का विशेष स्थान था।

"छात्रावास में नियम हैं, और नियम अच्छे होते हैं," उसकी बहन ने विश्वासपूर्वक कहा।

परंतु फेबियोला का मन संशय से भरा था। इतने सारे नियम! यह सब उसे अपनी आज़ादी पर एक बंधन जैसा लग रहा था — विशेषकर जब वह अपने दादी के साथ बिताए अनौपचारिक और स्वतंत्र जीवन की याद करती।

एक नियम था – सुबह और शाम प्रार्थना में भाग लेना अनिवार्य। दूसरा – हर सब्त चर्च की सेवाओं में उपस्थिति। फेबियोला को ईश्वर या बाइबिल में कोई रुचि नहीं थी। उसने अपनी बहन से इन सब बातों की शिकायत की, पर बहन ने केवल इतना कहा – "बस जारी रखो। तुम्हें पछतावा नहीं होगा।"

फेबियोला ने हिम्मत नहीं हारी। उसने अपने रूममेट्स के साथ समय बिताना शुरू किया, जिन्होंने उसे प्रार्थना और बाइबल अध्यान में शामिल होने का निमंत्रण दिया। वे सब मिलकर सब्त की शुरुआत का स्वागत करते थे। यह सब फेबियोला के लिए नया और कभी-कभी अजीब भी था। पर धीरे-धीरे, जिज्ञासा उसके दिल में दस्तक देने लगी।

"हमें सब्त पर गिरजा बाइबल अध्यान क्यों करनी चाहिए?" उसने रूममेट्स से पूछा।

उत्तर मिला – "अगर तुम और जानना चाहो, तो हम पादरी से तुम्हें सिखाने के लिए कह सकते हैं।" हालांकि फेबियोला तुरंत तैयार नहीं थी, लेकिन उसके भीतर कुछ बदलने लगा था।

विश्वविद्यालय की धर्म कक्षाओं के दौरान, विशेष रूप से प्रकाशितवाक्य की पुस्तक पर आधारित अंतिम कक्षा में, फेबियोला ने शिक्षक से खुद बाइबिल अध्ययन करने की इच्छा जताई।

यह वह मोड़ था, जहाँ उसकी आत्मिक यात्रा ने गति पकड़ी। छात्रावास की डीन डेल्ली और उनके पति ने उसका मार्गदर्शन किया। गहराई से बाइबिल अध्ययन करते हुए, फेबियोला ने अंततः यीशु को अपने व्यक्तिगत उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार किया और बपतिस्मा लिया।

अब उसके जीवन में एक नई रोशनी है। उसने बहुत कुछ खोया — माँ, पिता, दादी — लेकिन अब उसे एक नया परिवार मिल गया है। छात्रावास की डीन और उनके पति अब उसके लिए माता-पिता समान हैं, और रूममेट्स उसकी बहनों जैसी हैं। वही नियम, जो पहले उसे बोझ लगे थे, अब उसे अपने जीवन के रक्षक और मार्गदर्शक प्रतीत होते हैं। वह मुस्कुराकर कहती है — "अब मुझे लगता है कि नियम मेरे अपने भले के लिए हैं।"


फेबियोला का छात्रावास – एडलवाइस छात्रावास – वर्ष 1981 में तेरहवीं सब्त की पेशकश से बना था। और आज, उसी छात्रावास ने न जाने कितनी बेटियों को नया जीवन, नया विश्वास और नया परिवार दिया है।

आज, जब हम 28 जून को तेरहवीं सब्त की पेशकश की योजना बना रहे हैं, तो याद रखें — आपकी उदारता किसी के जीवन को बदल सकती है। जैसे फेबियोला का जीवन बदला, वैसे ही और भी अनेक आत्माएं आपके प्रेम और सहयोग की प्रतीक्षा में हैं।


धन्यवाद और जोहार!


सेवेन्थ डे ऐडवेंटिस्ट चर्च डोंगापानी
कुटुंगिया, सिमडेगा जिला, झारखंड

वेस्टर्न झारखंड सेक्शन ऑफ सेवेन्थ डे ऐडवेंटिस्ट चर्च

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